नीतीश कुमार और विपक्ष की एकजुटता
- By Vinod --
- Wednesday, 07 Sep, 2022
nitish kumar and opposition unity
Nitish Kumar And Opposition Unity : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में पाला बदला है। विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ लडऩे के बाद अब उससे गठबंधन तोडक़र लालू प्रसाद यादव के राजद से उन्होंने हाथ मिला लिया। भारतीय राजनीति में इस समय नीतीश कुमार वह चेहरा हैं, जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। साल 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों जुट चुके हैं, ऐसे में नीतीश कुमार अगर विपक्ष के बंटे हुए दलों को एकजुट करने के लिए दिल्ली के चक्कर लगा रहे हैं तो यह उनकी भावी राजनीति का सधा हुआ कदम है।
उन्होंने जहां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की है, वहीं वाम दलों के नेताओं से भी मिल रहे हैं। अपनी इन मुलाकातों के बाद वे जब पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हैं तो उनके चेहरे पर मुस्कान होती है और इस बात पर जोर देते दिखते हैं कि अगर विपक्ष के सभी दल एकजुट हो जाएं तो इन्हें हराया जा सकता है। इन्हें के रूप में उनका इशारा भाजपा की तरफ होता है। हालांकि यह सवाल अहम है कि जितनी सीटों पर जनता दल यू ने इस बार विधानसभा चुनाव लड़ा था, उसकी आधी भी वह नहीं जीत पाया। लेकिन अब पाला बदलकर राजद के साथ आने के बाद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं। क्या वास्तव में महज विपक्ष के एकजुट हो जाने से ही भाजपा और साल 2024 में भी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को हराया जा सकता है?
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कभी एनडीए के सहयोगी रहे नीतीश कुमार ने जोरदार मोर्चा खोल रखा है। बिहार में राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद से ही नीतीश लगातार केंद्र पर हमला कर रहे हैं। बात चाहे 2024 में 50 लोकसभा सीट पर सिमटाने की हो या फिर मोदी के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी, वो हर मोर्चे पर आगे हैं। कुछ ऐसा ही मोर्चा कभी एनडीए के संयोजक रहे चंद्रबाबू नायडू ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ खोल दिया था। 2018 में एनडीए से अलग होने के बाद नायडू ने मोदी सरकार के खिलाफ जबरदस्त मोर्चेबंदी की थी।
जैसा काम आज नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कर रहे हैं वैसा ही नायडू ने 2019 के चुनाव से पहले किया था। हालांकि, वो विपक्ष को पूरी तरह लामबंद करने में सफल नहीं हो पाए थे। अब साल 2022 में स्थिति कुछ और है। इस बार नीतीश कुमार जोकि एनडीए के घटक रहे हैं, ने चंद्रबाबू की भूमिका को अपना लिया है। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी को मात देने के लिए वह विपक्ष के साझा उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल हैं। अब यह और बात है कि वे खुद कभी इस मुहिम से खुद को जुड़ा नहीं मानते हैं। उनका दावा है कि वे विपक्ष की लामबंदी करने में जुटे हैं ताकि 2024 में केंद्र से भाजपा सरकार को उखाड़ फेंका जाए।
अब पूछा यह जा रहा है कि क्या नीतीश कुमार को मिशन 2024 में मनचाही सफलता मिल पाएगी। यह समझने के लिए विपक्षी दलों के बयानों को समझना होगा। टीएमसी ने कुछ दिन पहले घोषणा की है कि वह राज्य में अकेले चुनाव लड़ेगी और परिणाम के बाद या पोस्ट पोल अलायंस कर सकती है। जाहिर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर अपना दावा छोड़ती नजर नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा भी था कि केंद्र से मोदी सरकार को हटाना उनकी आखिरी लड़ाई होगी।
दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने बयान दिया है कि वह सबकुछ ममता और के चंद्रशेखर राव पर छोड़ते हैं। यानी उन्होंने भी एक तरह से चुप्पी साध रखी है। समाजवादी पार्टी के मुखिया को मालूम है कि यूपी के बिना केंद्र में किसी के लिए भी सरकार बनाना मुश्किल है। ऐसे में वह पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी 2024 के लिए कुछ बोला नहीं है। यह भी सनद रहे कि जहां-जहां कांग्रेस कमजोर हुई है वहां आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया है। दिल्ली और पंजाब इसका बड़ा उदाहरण है। ऐसे में क्या केजरीवाल कांग्रेस वाले मोर्चे के साथ जाने की जहमत उठाएंगे?
दरअसल, नीतीश जिस आक्रामक तरीके से भाजपा के खिलाफ लामबंदी में जुटे हैं, उसपर सत्ताधारी दल भी करीब से नजर बनाए हुए है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक दिन पहले मुंबई में उद्धव ठाकरे पर बड़ा हमला किया था। उन्होंने कहा था कि जिस तरह से उद्धव ने दगाबाजी की थी, उसके लिए उन्हें सबक सिखाना जरूरी था। यही नहीं, उन्होंने एकनाथ शिंदे वाले गुट को असली शिवसेना बता दिया। तो क्या भाजपा 2024 से पहले कुछ बड़ा तैयारी करके नीतीश की घेराबंदी करेगी? या फिर नीतीश मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खड़ा कर पाएंगे? 2024 चुनाव में अभी करीब-करीब डेढ़ साल का वक्त है। ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन नीतीश के सामने नायडू वाली चुनौती भी है, जिससे वो कैसे निपटेंगे ये देखने वाली बात होगी।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों परिवारवाद और भ्रष्ट राजनेताओं के एकजुट होने का बयान दिया था। इस बयान के मायने बिहार में राजद और जदयू के मिलकर सरकार बनाने के संबंध में निकाले गए हैं। इसके बाद बिहार में सत्ताधारी राजनीतिक दलों की ओर से इसका जवाब भी दिया गया था। अब भाजपा कह चुकी है कि वह आगे कभी भी नीतीश कुमार के साथ गठबंधन नहीं करेगी। यानी पार्टी की राजनीतिक लड़ाई अब व्यक्तिगत हो गई है। नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की चाह रखते हैं, लेकिन यह तब संभव नहीं था, जब वे भाजपा के साथ राज्य में सरकार चलाते रहते। मोदी को हराने के लिए भाजपा से दूरी जरूरी थी, हालांकि अब आगे की लड़ाई कैसे लड़ी जाएगी, इस पर सभी की नजर है। वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव अनेक क्षत्रपों के लिए अंतिम साबित होने वाला है।